आम नागरिक को पीएम मोदी के निर्णायक कदमों से पेट्रोल-डीजल की कीमत में मिली राहत

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दुनिया में अस्थिरता का माहौल है। एक ओर रूस-यूक्रेन युद्ध तो दूसरी तरफ इजरायल के बॉर्डर पर अस्थिरता। वहीं आज भी कोरोना के बाद दुनिया की तमाम बड़ी अर्थव्यवस्थाएं आर्थिक मंदी से बाहर नहीं आ पा रही हैं। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरगामी नीतियों का नतीजा है कि कोरोना की मार, वैश्विक अस्थिरता और वैश्विक मंदी का असर देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर नहीं पड़ा है।

राज्यसभा में एक अतारांकित प्रश्न के उत्तर के मुताबिक मोदी सरकार द्वारा उठाए गए निर्णायक कदमों ने आम नागरिकों को वैश्विक तेल की कीमतों में अस्थिरता से बचाया है। अक्टूबर 2021 से अक्टूबर 2023 तक के आंकड़े बताते हैं कि भारत के प्रमुख पड़ोसी देशों में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में खासा इजाफा देखने को मिला है, जबकि भारत में इस दौरान कीमतों में गिरावट देखी गई है।

पड़ोसी देशों में जबरदस्त बढ़ोतरी
अक्टूबर 2021 से अक्टूबर 2023 के बीच पेट्रोलियम की कीमतों की बात करें तो श्रीलंका में 118%, पाकिस्तान में 73%, नेपाल में 53% और बांग्लादेश में 45% की बढ़ोतरी हुई है। ये तो भारत के पड़ोसी देश हैं, जहां लोगों को कीमतों में इजाफे का दंश झेलना पड़ा है। पेट्रोलियम की कीमतों से भारत के पड़ोसी देश ही नहीं बल्कि दुनिया के विकसित देशों को भी दामों में बढ़ोतरी की मार झेलनी पड़ी है। अक्टूबर 2021 से अक्टूबर 2023 के बीच अमेरिका में 39%, कनाडा में 31%, स्पेन में 25%, फ्रांस में 24%, इटली में 22%, जर्मनी में 21% और यूके में 13% की उछाल देखी गई।

पीएम मोदी ने थाम रखी है अर्थव्यवस्था की लगाम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना काल से देश की अर्थव्यवस्था को थामे रखा है। जहां एक ओर भारत की अर्थव्यवस्था लगातार तरक्की की राह पर है, वहीं वैश्विक मंदी का भी देश में कुछ खास असर नहीं पड़ता दिख रहा है। आलम ये है कि पेट्रोल की कीमत में बदलाव के मामले में भारत में 5% की तेज गिरावट देखी गई, जबकि अधिकांश देशों में वृद्धि देखी गई।

आपको बता दें कि केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी ने हाल ही में कहा था कि मोदी सरकार के कदमों से देश में तेल की कीमतें कम हुई हैं और ये केवल पीएम मोदी द्वारा उठाए गए निर्णायक कदमों के कारण है। दिल्ली में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में हुए एक कार्यक्रम में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था, “अच्छी विदेश नीति की वजह से पेट्रोल की कीमतों पर भारत कंट्रोल कर पाया है।”

कैसे तय होते हैं पेट्रोल के दाम?
आमतौर पर माना जाता है कि पेट्रोल-डीजल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों से तय होती हैं। तेल कंपनियां यह देखती हैं कि पिछले 15 दिनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में भावों का औसत क्या है, उसी हिसाब से दाम तय किए जाते हैं। यानी जब कच्चे तेल के दाम घटते या बढ़ते हैं तो उसका असर आम उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ता है।

कई तरह के टैक्स से बढ़ जाती है कीमत
दरअसल, इन उत्पादों पर लगने वाले टैक्स घरेलू बाजार में कीमतें बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पेट्रोल की कीमत बढ़ने का एक प्रमुख कारण स्थानीय करों की ज्यादा वसूली है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भले ही पेट्रोल-डीजल की कीमतें कम हों, लेकिन उसका असर घरेलू बाजार में इसलिए नहीं होता है क्योंकि आम उपभोक्ता तक पहुंचते-पहुंचते सरकार कई तरह के टैक्स लगा देती है। सरकार पहले इस पर उत्पाद शुल्क और उपकर लगाती है, जिससे उसको राजस्व मिलता है।

राज्य सरकार वसूलती है वैट
इसके अलावा राज्य सरकारें बिक्री कर या वैट वसूलती हैं। उसके बाद माल भाड़ा, डीलर कमीशन, वैल्यू एडेड टैक्स जुड़ जाता है। उदाहरण के लिए दिल्ली में पेट्रोल की कीमत को समझें। यहां पेट्रोल का बेस प्राइस 57।15 रुपये प्रति लीटर है। माल ढुलाई 0।20 रुपये प्रति लीटर, उत्पाद शुल्क 19।90 रुपये प्रति लीटर, डीलर कमीशन (औसत) लीटर 3।76 रुपये प्रति लीटर और वैट (डीलर कमीशन पर वैट सहित) 15।71 रुपये प्रति लीटर। इन सबको जोड़कर दिल्ली में फिलहाल पेट्रोल 96।72 रुपये प्रति लीटर मिल रहा है।

कौन तय करता है कीमत?
भारत मुख्य रूप से आयात के माध्यम से अपनी घरेलू तेल की मांग को पूरा करता है। भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी से ज्यादा कच्चा तेल बाहर से मंगवाता है। कच्चे तेल की कीमत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) ही तय करता है। भारत को भी उसी कीमत पर कच्चा तेल खरीदना पड़ता है, जो ओपेक तय करता है। सरकारी तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल की कीमत रोज तय करती हैं। इसके साथ ही भारत रूस से भी तेल आयात करता है।

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