भारतीय वायु सेना ने रूसी एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम को दिया ‘सुदर्शन’ नाम

नई दिल्‍ली । रूस से मिले एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम एस-400 को भारतीय वायु सेना ने भगवान कृष्ण के हथियार ‘सुदर्शन चक्र’ के नाम पर ‘सुदर्शन’ रखा है। अब तक 3 स्क्वाड्रन भारत में आ चुकी है और बाकी दो की डिलीवरी 2024 तक होनी है। वायु सेना ने भारतीय सेना के साथ चीन की सीमा से लगे उत्तर पूर्व क्षेत्र में हुए ‘आकाश पूर्वी’ अभ्यास में पहली बार एस-400 को शामिल किया। यूक्रेन से युद्ध के चलते बाकी दो एस-400 की आपूर्ति में देरी होने की संभावना है, इसलिए भारत ने खुद एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम एस-400 बनाने का फैसला लिया है।
चीन और पाकिस्तान के खतरे को देखते हुए भारत को ताकतवर रूसी एयर डिफेंस सिस्टम एस-400 की बहुत जरूरत थी। इसलिए पूर्व वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया के कार्यकाल में भारत और रूस के बीच हुए पांच स्क्वाड्रन एस-400 मिसाइल सिस्टम का सौदा 35 हजार करोड़ रुपये में हुआ था। यूक्रेन से युद्ध के बीच रूस अब तक भारत को 3 एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की आपूर्ति कर चुका है, जबकि दो सिस्टम अभी मिलने हैं। तीनों एस-400 को देश की पूर्वी, पश्चिमी और उत्तरी सीमा पर तैनात किया जा चुका है। बाकी दो स्क्वाड्रन की डिलीवरी 2024 तक होनी है, लेकिन यूक्रेन से युद्ध के चलते इनकी आपूर्ति में देरी होने की संभावना है।
वायु सेना और भारतीय सेना ने पिछले माह चीन की सीमा से लगे उत्तर पूर्व क्षेत्र में ‘आकाश पूर्वी’ अभ्यास किया, जिसमें सतह से हवा में मार करने वाली लंबी दूरी के रूसी एस-400 को भी शामिल किया गया। इसके अलावा इस मेगा हवाई अभ्यास में सुखोई-30 एमकेआई, राफेल, स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस और अटैक हेलीकॉप्टर एलसीएच प्रचंड के साथ-साथ जमीनी सैनिक भी शामिल थे। इस अभ्यास ने भारतीय वायु सेना की परिचालन तत्परता को प्रदर्शित किया। वायु सेना ने भगवान श्रीकृष्ण के हथियार ‘सुदर्शन चक्र’ के नाम पर रूसी एयर मिसाइल डिफेंस सिस्टम एस-400 का नाम ‘सुदर्शन’ रखा है।
भारत के पास पड़ोसी देशों से लगी लगभग 15 हजार किमी. लम्बी सीमा की निगरानी के लिहाज से मिसाइल डिफेंस सिस्टम कम हैं, इसलिए भारत ने रूस से पांचों एस-400 की आपूर्ति होने के बाद ‘मेक इन इंडिया’ योजना के तहत भारत में 5 और एस-400 स्क्वाड्रन का निर्माण किये जाने की योजना है। भारत सिर्फ चीन के साथ 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है। ये सीमा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है। ये सरहद तीन सेक्टरों में बंटी हुई है, जिसमें पश्चिमी सेक्टर यानी जम्मू-कश्मीर, मध्य सेक्टर यानी हिमाचल प्रदेश एवं उत्तराखंड और पूर्वी सेक्टर यानी सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश है।
डीआरडीओ की लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल (एलआरएसएएम) 2029 तक तैनाती के लिए तैयार हो जाएगी। प्रोजेक्ट ‘कुशा’ के तहत बनाई जा रही यह मिसाइल 250 किमी रेंज तक फाइटर जेट, मिसाइलों और ड्रोन और 350 किमी रेंज तक एडब्ल्यूईसीएस जैसे बड़े लक्ष्य का पता लगाने में सक्षम होगी। यह स्टील्थ फाइटर जेट्स का भी पता लगाने में सक्षम होगी। पीएम मोदी की अध्यक्षता वाली सीसीएस ने मई, 2022 में बहुत ही गुप्त तरीके से इस परियोजना को मंजूरी देने के साथ ही तेजी से विकास के लिए 21,700 करोड़ रुपये के फंड को मंजूरी दी थी। कुल 5 स्क्वाड्रन में 3 अलग-अलग तरह की 150 किलोमीटर, 250 किलोमीटर और 350 किलोमीटर तक सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें होंगी।