राज्‍यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायकों का क्‍या होगा, जानें क्‍या हैं नियम?

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नई दिल्‍ली । उत्‍तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में हुई राज्‍यसभा चुनाव की वोटिंग में विधायकों के पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर मतदान करने यानी क्रॉस वोटिंग की खबरें आ रही हैं। हिमाचल में क्रॉस वोटिंग से जहां कांग्रेस के पैरों तले जमीन खिसक गई है।

वहीं, उत्‍तर प्रदेश में समाजवादी प्रमुख अखिलेश यादव की बौखलाहट साफ झलकर रही है। यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने कहा कि वो जो लाभ पाने वाले हैं, चले जाएंगे। उनके इस बयान से उनकी हताशा साफ नजर आई है। वहीं, हिमाचल में 9 से 10 विधायकों के क्रॉस वोटिंग के कारण अगर बीजेपी उम्मीदवार जीतता है तो पार्टी कांग्रेस सरकार के खिलाफ अविश्‍वास प्रस्ताव भी ला सकती है। ऐसे में ये सवाल उठना लाजिमी है कि पार्टी लाइन के खिलाफ वोटिंग करने वाले विधायकों का अब क्‍या होगा?

संविधान के मुताबिक, राज्‍यसभा चुनावों में राजनीतिक दलों की ओर से व्हिप तो जारी किया जा सकता है, लेकिन ये बेअसर ही होता है। दरअसल, पार्टी की ओर से जारी व्हिप को मानना या ना उसके खिलाफ जाना पूरी तरह से विधायकों और सांसदों की मर्जी पर निर्भर करता है। वहीं, राज्‍यसभा चुनावों में पार्टी लाइन के खिलाफ मतदान करने पर दलबदल कानून भी लागू नहीं होता है। बता दें कि राज्यसभा में सांसदों की ज्‍यादा से ज्‍यादा संख्या होना हर पार्टी के लिए जरूरी है, क्योंकि इसी संख्या के आधार पर राष्ट्रपति चुनाव में हर दल अपनी दावेदारी पेश करता है। राष्ट्रपति चुनाव में राज्‍यसभा के सदस्‍यों की भूमिका बेहद अहम मानी जाती है।

क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायकों पर क्‍या कार्रवाई होगी?

सबसे पहले जानते हैं कि क्रॉस वोटिंग क्या है औऱ ऐसा करने वालों के खिलाफ क्या कार्रवाई होती है? क्रॉस वोटिंग का मतलब है कि अपनी पार्टी के खिलाफ जाकर दूसरी पार्टी के पक्ष में वोट करना। आमतौर पर दुनियाभर में राजनीतिक दलों के बीच संसद या महत्वपूर्ण मामलों में क्रासवोटिंग के उदाहरण हैं। हालांकि, पार्टियां इसे व्हिप जारी कर रोकने की पूरी कोशिश करती हैं। हालांकि, कई बार राजनीतिक दलों को इसमें नाकामी मिलती है। राज्‍यसभा चुनावों में दलबदल कानून लागू नहीं होने के कारण क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायकों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकती हैं। साफ है कि हिमाचल प्रदेश और उत्‍तर प्रदेश में पार्टी लाइन के खिलाफ जाने वाले विधायकों पर पार्टी नेतृत्‍व कोई कार्रवाई नहीं कर पाएगा।

क्रॉस वोटिंग पर पार्टी से बाहर किए जा सकते हैं विधायक

बेशक संविधान के मुताबिक पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर मतदान करने वाले विधायकों की विधानसभा सदस्‍यता नहीं छीनी जा सकती है। लेकिन, कोई भी राजनीतिक दल क्रॉस वोटिंग करने वाले अपने विधायकों को पार्टी से बाहर का रास्‍ता जरूर दिखा सकता है। ये पार्टी नेतृत्‍व का विशेषाधिकार होता है। साफ है कि दोनों ही राज्‍यों में राजनीतिक दल अपने जिस-जिस विधायक का नाम क्रॉस वोटिंग में सामने आएगा, उन्‍हें पार्टी से बाहर का रास्‍ता दिखा सकती हैं। दूसरे शब्‍दों में कहें तो उनकी पार्टी की प्राथमिकता सदस्‍यता तक छीनी जा सकती है। हिमाचल में ये पूरी तरह से कांग्रेस तो यूपी में सपा पर निर्भर होगा कि वे ऐसे विधायकों के खिलाफ क्‍या कार्रवाई करते हैं।

राष्‍ट्रपति और राज्‍यसभा चुनाव में व्हिप क्‍यों होते हैं बेअसर

राष्‍ट्रपति चुनावों के दौरान भी देखा गया था कि में एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने जबरदस्त जीत हासिल की। उम्‍मीद के उलट उन्हें ज्यादा वोट मिले। साफ था कि पूरे देश में उनके पक्ष में पार्टी के लोगों ने अपनी ही पार्टी के खिलाफ जाकर वोट दिया। इसके बाद पिछले राज्यसभा चुनावों में देखा गया कि हरियाणा के कुलदीप विश्‍नोई ने क्रास वोटिंग की। इसके बाद कांग्रेस ने उन्हें सभी पदों से बर्खास्त कर दिया। राष्‍ट्रपति चुनाव के मामले में प्रावधान है कि पार्टियां व्हिप जारी नहीं कर सकतीं। दरअसल, राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के चुनावों को सदन की प्रक्रिया का हिस्सा नहीं माना जाता। इसमें सांसद या विधायक अपनी इच्छा से वोट कर सकते हैं। हालांकि, उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे पार्टीलाइन पर ही वोट दें। दलबदल कानून के तहत नहीं आता है।

कैसे पता चलता है, किसने की पार्टी लाइन के खिलाफ वोटिंग

राज्‍यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायकों के खिलाफ पार्टियां कार्रवाई कर सकती हैं, लेकिन ये संविधान या प्रावधानों के दायरे में नहीं होगी। ये कार्रवाई उनका अंदरूनी मसला होगा। पार्टियां क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायकों को कारण बताओ नोटिस दे सकती हैं। जवाब से संतुष्‍ट नहीं होने पर पार्टी से निलंबित या बर्खास्त किया जा सकता है। वैसे तो राज्‍यसभा चुनाव में किसने किसे वोट किया, ये सीधे तौर पर पता नहीं किया जा सकता है। लेकिन, हर पार्टी में अंदरूनी तौर पर इस बात का पता कई तरीकों से लगाया जा सकता है। कई बार इसका पता नहीं लगता। लिहाजा, इन चुनावों में क्रासवोटिंग करने वालों के खिलाफ पार्टी बहुत कुछ करने की स्थिति में नहीं होती है।