छोटी देवरानी होने लगी थी ‘बड़ी’ सीता सोरेन ने बताई ये 3 वजहें

रांची। सोरेन परिवार में आखिर वही हुआ जिसकी आशंका लंबे समय से जताई जा रही थी। शिबू सोरेन परिवार में बगावत हो ही गई है। गुरुजी की बड़ी बहू और पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा की सदस्यता और विधायक पद से इस्तीफा दे दिया है। पिछले कई महीनों से सीता सोरेन के नाराज होने की खबरें आ रहीं थीं और अंतत: सीता ने अपना ‘दुख’ जाहिर करते हुए इस्तीफा दे दिया।

खुद क्या बताई इस्तीफे की वजह?
सीता ने शिबू सोरेन को भेजे अपने इस्तीफे में कहा कि वह अत्यन्त दुःखी हृदय के साथ अपना इस्तीफा पेश कर रही हैं। सीता का कहना है कि उनके पति दुर्गा सोरेन के निधन के बाद उनके परिवार को अलग-थलग कर दिया गया। उन्होंने पार्टी के लिए अपने पति के योगदान का जिक्र करते हुए लिखा, ‘मेरे स्वर्गीय पति, श्री दुर्गा सोरेन, जो कि झारखंड आंदोलन के अग्रणी योद्धा और महान क्रांतिकारी थे, के निधन के बाद से ही मैं और मेरा परिवार लगातार उपेक्षा का शिकार रहें है। पार्टी और परिवार के सदस्यों द्वारा हमे अलग-थलग किया गया है, जो कि मेरे लिए अत्यंत पीड़ा दायक रहा है। मैंने उम्मीद की थी कि समय के साथ स्थितियां सुधरेंगी, लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हुआ। झारखंड मुक्ति मोर्चा, जिसे मेरे स्वर्गीय पति ने अपने त्याग समपर्ण और नेतृत्व क्षमता के बल पर एक महान पार्टी बनाया था, आज वह पार्टी नहीं रहीं मुझे यह देख कर गहरा दुःख होता है कि पार्टी अब उन लोगों के हाथों में चढ़ गई है जिनके दृष्टिकोण और उद्देश्य हमारे मूल्यों और आदर्शों से मेल नहीं खाते।’

साजिश रचे जाने का लगाया आरोप
सीता ने अपने खिलाफ साजिश रचे जाने का भी आरोप लगाया है। उन्होंने कहा, ‘श्री शिबू सोरेन (गुरुजी बाबा के) अथक प्रयासों के बावजूद जिन्होने हम सभी को एक जुट रखने के लिए कठिन परिश्रम किया, अफसोस कि उसके प्रयास भी विफल रहें मुझे हाल ही में यह ज्ञात हुआ है कि मेरे और मेरे परिवार के खिलाफ भी एक गहरी साजि‍श रची जा रहीं है। मै अत्यन्त दुःखी हूं। मैंने यह दृढ़ निश्चय किया है कि मुझे झारखंड मुक्ति मोर्चा और इस परिवार को छोड़ना होगा।’

क्यों नाराज थीं सीता सोरेन
दरअसल सीता सोरेन लंबे समय से पार्टी में खुद को उपेक्षित मान रहीं थीं। उनका मानना था कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए शिबू सोरेन के तीनों बेटों में उनके पति दुर्गा सोरेन ने सबसे अधिक मेहनत की थी। दुमका जिले की जामा सीट से विधायक सीता सत्ता में भागीदारी नहीं मिलने से नाखुश थीं। सीता सोरेन अक्सर अनौपचारिक बातचीत में अपनी उपेक्षा का इजहार करती थीं। हालांकि, झामुमो में उन्हें केंद्रीय महासचिव का पद भी दिया गया था, लेकिन संगठन के फैसलों में उन्हें अपेक्षित महत्व नहीं दिया गया।

मंत्री पद नहीं मिलना भी एक वजह
हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद चंपाई सोरेन सरकार के गठन के समय से ही सीता सोरेन नाराज चल रहीं थीं। खबरें हैं कि कहीं न कहीं खुद को हाशिए पर जाता मानकर उन्होंने इस तरह का निर्णय लिया है। चंपाई सरकार में सोरेन परिवार के तीसरे विधायक बसंत सोरेन को मंत्री बनाया गया, लेकिन सीता की उम्मीदों को एक बार फिर झटका लगा।

क्या देवरानी कल्पना से थी दिक्कत?
बताया जाता है कि सीता सोरेन अपनी छोटी देवरानी कल्पना सोरेन को दी जा रही अहमियत से भी नाराज थीं। भ्रष्टाचार के केस में हेमंत सोरेन के जेल जाने से पहले जब नए विकल्पों पर विचार किया जा रहा था, तब कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री बनाए जाने चर्चा भी जोरशोर से चल रही थी। तीन बार की विधायक सीता सोरेन को राजनीति में नई नवेली कल्पना का नेतृत्व मंजूर नहीं था। सीता ने खुलकर विरोध करना शुरू कर दिया। यही वजह है कि परिवार में फूट की आशंका को देखते हुए हेमंत सोरेन कल्पना को सीएम नहीं बना पाए और राज्य की कमान चंपाई सोरेन को दी गई। हालांकि, पिछले कुछ समय से जिस तरह कल्पना ने ना सिर्फ राजनीति में एंट्री की और पति की जगह संगठन का कामकाज अपने हाथ में ले लिया उससे सीता असहज थीं और अलग होने का फैसला कर लिया।