दंगों के दौरान गर्भवती की पिटाई और फिर दुष्कर्म, जानिए देश का चर्चित मामला बिलकिस बानो केस

Bilkis Bano Case Supreme Court To Hear Plea Against Release Of Convicts  Before Time | Bilkis Bano Case: बिलकिस बानो केस को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट  में सुनवाई, 11 दोषियों को रिहा

नई दिल्‍ली । सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात में 2002 के दंगों के दौरान बिलकिस बानो से सामूहिक दुष्कर्म और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों को सजा से छूट देने के राज्य सरकार के फैसले को सोमवार को यह कहकर रद्द कर दिया कि आदेश ”घिसा पिटा” था और इसे बिना सोचे-समझे पारित किया गया था।

न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भूइयां की पीठ ने दोषियों को दो सप्ताह के अंदर जेल अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश भी दिया। सजा में छूट को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं को सुनवाई योग्य करार देते हुए पीठ ने कहा कि गुजरात सरकार सजा में छ्रट का आदेश देने के लिए उचित सरकार नहीं है। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि एक राज्य जिसमें किसी अपराधी पर मुकदमा चलाया जाता है और सजा सुनाई जाती है, वही दोषियों की माफी याचिका पर निर्णय लेने में सक्षम होता है। दोषियों पर महाराष्ट्र द्वारा मुकदमा चलाया गया था।

क्या है बिलकिस बानो केस?

आखिर क्या है बिलकिस बानो केस, आइए जानें- क्या है बिलकिस बानो केस? दरअसल, 27 फरवरी 2002 को ‘कारसेवकों’ से भरी साबरमती एक्सप्रेस के कुछ डिब्बों में गोधरा के पास आग के हवाले कर दिया गया था। इस कारण 59 लोगों की मौत हो गई थी। घटना के बाद गुजरात में दंगे भड़क उठे थे। दंगाइयों से बचने के लिए बिलकिस बानो 15 लोगों के साथ वहां से भाग गई थी।

तब उसके साथ उसकी साढ़े तीन साल की बेटी सालेहा भी थी। साथ ही बानो तब 5 महीने की गर्भवती भी थी। बानो का परिवार फिर 3 मार्च 2002 को छप्परवाड़ गांव पहुंचा। यहां भी उनको दंगाइयों से खतरा था।

लाठियों और जंजीरों से बानो और उसके परिवार पर अटैक

डर के मारे वह खेतों में छिप गए थे। हालांकि, उन्हें ढूंढ लिया गया। दायर चार्ज़शीट के मुताबिक तब 12 लोगों समेत करीब 30 लोगों ने लाठियों और जंजीरों से बानो और उसके परिवार पर अटैक किया। पिटाई की, फिर किया रेप… दंगाइयों ने कोई दया ना दिखाते हुए गर्भवती बानो के अलावा 4 अन्य महिलाओं की भी पिटाई की, साथ ही उनके साथ रेप जैसी घिनौनी घटना को अंजाम दिया। हमलावरों ने परिवार के कई लोगों उनके आंखों के सामने हत्या भी कर दी, जिसमें 7 मुस्लिम भी मारे गए।

मारे गए सदस्य बानो के परिवार के सदस्य थे। मरने वालों में बानो की बेटी भी शामिल थीं। 3 घंटे रही थी बेहोश…मदद करने वाली कांस्टेबल को मिली सजा दंगाई घटना को अंजाम देने के बाद चले गए। वहीं बानो बेहोश पड़ी थी।

3 घंटे तक खुद को बेसुद पाया

उसने 3 घंटे तक खुद को बेसुद पाया। जब उसे होश आया तो फिर एक आदिवासी महिला ने उसकी मदद की और पहनने के लिए कपड़े दिए। फिर एक होमगार्ड से मिली, जो उन्हें शिकायत दर्ज कराने के लिए लिमखेड़ा थाने ले गया। वहां कांस्टेबल सोमाभाई गोरी ने शिकायत दर्ज की, लेकिन फिर गोरी को ही अपराधियों को बचाने के आरोप में 3 साल की सजा सुना दी गई थी।

बानो को गोधरा रिलीफ कैंप पहुंचाया गया

बानो को गोधरा रिलीफ कैंप पहुंचाया गया और वहां से मेडिकल जांच के लिए अस्पताल ले जाया गया। उनका मामला राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पहुंचा। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने घटना की जांच करने के लिए सीबीआई को आदेश दिया। दो साल में बदले 20 घर बानो के लिए वह समय बहुत खराब था। उसे शुरूआत में पुलिस से मदद नहीं मिली।

बाद में मामला मानवाधिकार आयोग के पास गया तो उम्मीद जगी। सीबीआई ने जांच के दौरान 18 लोगों को दोषी पाया, जिसमें 5 पुलिसकर्मी समेत दो डॉक्टर भी थे। पुलिस और डॉक्टर पर सबूतों को मिटाने का आरोप लगा था। जब जांच चल रही थी तो बानो को जान से मारने की धमकियां मिल रही थी।

बचन के लिए उसने दो साल में 20 बार घर बदले। उसने सुप्रीम कोर्ट से अपना केस गुजरात से बाहर किसी दूसरे राज्य में लाने की अपील की। मामला मुंबई कोर्ट भेज दिया गया। इसके बाद सीबीआई की विशेष अदालत ने जनवरी 2008 में 11 लोगों को दोषी करार दिया और 7 को सबूतों के अभाव में छोड़ दिया गया था। घटना के वक्त बिनकिस बानो 21 साल की थीं।